Tuesday, October 16, 2012

जीवन का मोल


राख से कहो की धुल बन जाए 
ढलते सूरज को बोलो की वही थम जाए 

ढलती किरणों में जब ये धुल जगमगाए
जीवन के सारे दुःख भी उसमे खो जाए 


खोजने जीवन का नया पथ 
चलो हम भी इस धूल में खो जाए ||



जब खेत में खिला एक फूल महकाए
माथे की झूरियां भी हलकी हो जाए 

वही फूल जब घर के  आँगन को महकाए
घर के सदस्यों के चेहरे पे मुस्कान च जाए 

पाने उस मुस्कान को चलो हम भी खिलखिलाएं 
हम भी उस फूल की तरह गलिय महका जाएँ ||





जब छज्जे पे बैठा पक्षी गुनगुनाये 
किसी के आने का आभास हो जाए

जब वो पक्षी हर घर ख़ुशी का सन्देश पहुचाये 
उस मीठी वाणी से मन ध्व्यनात्मक लोक में घुम हो जाए 

समझने संसार की छुपी खुशियों को 
चलो हम भी ये स्वर अपनाएं ||



जब बहता हुआ सागर जग के सच को समाए 
बिना अभिलाषा के चलता चला जाए 

जीवन में मौन रखने का लाभ जो सिखाये 
अपने कर्म से तू जग जीत जाए 

आओ इस सादगी को हम अपनाएं 
जीवन में अपने उदार बन जाएँ ||

No comments:

Post a Comment